tag:blogger.com,1999:blog-48969057391483826022023-11-15T07:14:57.904-08:00मुक्तक-क्षणिकाएंनवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-38530116350802408852013-02-20T01:21:00.000-08:002013-03-10T07:08:19.503-07:00देखा है.... पुजते मंजिलों को<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
न जाने किस किस आंख के घेरे में हूं<br />
हर वक्त किसी न किसी पहरे में हूं<br />
सबको दिखायी देती है मेरी चमक<br />
जानता हूं, कितने अंधेरे में हूं<br />
*******<br />
<br />
वो महलों के झरोखे में खड़े हैं<br />
उन्हें महलों पहुंचाने वाले रास्ते बेज़ुबान पड़े हैं<br />
उग आयी हैं झाड़ियां उन मज़ारों पर भी<br />
जो महलों की हिफ़ाज़त में बेमौत मरे हैं<br />
<div>
*******</div>
<br />
<br />
<br />
देखा है....<br />
पुजते मंजिलों को<br />
रास्तों की कभी<br />
जयकार नहीं देखी<br />
क्या हुआ जो नहीं पहुंचे वहां तक<br />
हौसलों की कभी<br />
हार नहीं देखी<br />
<div>
*******</div>
<br />
<br />
<div>
<div>
नहीं जानता स्त्रियां रोती क्यूं रहती है</div>
<div>
बात बात आंखें भिगोती क्यूं रहती है</div>
<div>
लड़ती क्यूं नहीं लड़ाइयां अपने हक की </div>
<div>
आंसूओं में खुद को डूबोती क्यूं रहती है</div>
<div>
*******</div>
</div>
<div>
<br /></div>
<div>
उसकी हर बात अदा लगने लगी</div>
<div>
<div>
<div>
वो मुमताज, अनारकली, नूरजहां लगने लगी</div>
<div>
यकबयक बचपने से बालिग हो गए</div>
<div>
इश्क हुआ तो यार! हम भी गालिब हो गए</div>
</div>
<div>
*******</div>
</div>
</div>
नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-32505303221442843072012-01-27T07:44:00.000-08:002012-01-27T07:44:25.919-08:00क्या कहें कैसे हैं हम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
तुम्हारे हर सवाल का जवाब हूं मैं<br />
तुम्हें किस किस पल का हिसाब दूं मैं<br />
तुम्हारा हर अफ़साना दर्ज़ है मुझ में<br />
दिल से पढो, तुम्हारी ही किताब हूं मैं<br />
*******<br />
<br />
जाने कितने क्या इल्ज़ाम लगाए उसने<br />
एक-एक गिन-गिन कर सुनाए उसने<br />
मोहब्बत का कत्ल करने मोहब्बत से<br />
दिल पर नश्तर ही नश्तर चुभाए उसने<br />
*******<br />
<br />
<br />
हवाएं कब किसकी हुयी है<br />
बहुत ही चंचला, छुईमुई है<br />
हवाओं को बांधने की कोशिश में<br />
कितनों की ही हवा निकल गयी है<br />
*******<br />
<br />
क्या कहें कैसे हैं हम<br />
जैसे थे वैसे हैं हम<br />
उड़ो तो आकाश<br />
डूबो तो सागर हैं हम<br />
*****<br />
<br />
<br />
जानता हूं नहीं बुलाओगे, फ़िर भी मैं आऊंगा<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
तुम्हारी हर जली-कटी, सुनता चला जाऊंगा<br />
तुम इंतज़ार ही करते रह जाओगे मेरे रोने का<br />
फ़िर भी मैं, मुस्कराए चला जाऊंगा<br />
<div><br />
</div><br />
<br />
<br />
<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-6549130929137202232011-09-14T09:47:00.001-07:002011-09-14T09:47:55.100-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
हर तरफ़ फ़ूल हों, खुश्बुओं का अहसास<br />
उमंगें ही उमंगें हो न कहीं संत्रास<br />
हर रिश्ते में घुली हो जीवन की मिठास<br />
जीतें हम विश्वास को, दें सबको विश्वास<br />
मिले सबको खुशियां. पूरी हों हर आशा<br />
प्रेम के दिन गढें प्रेम की नई परिभाषा<br />
******<br />
<br />
नहीं कोई यार आप सा, जानते हैं अच्छी तरह<br />
मांगते हैं आपको खुदा से रोज़ दुआ की तरह<br />
हसरत यही कि जब तक रहे जान में जान<br />
आप हमारे ही रहें हमारे साए की तरह<br />
*******<br />
<br />
सूरज तो रोज़ ही आता, चला जाता है जलाकर<br />
ये छांव ही है किसी की जो रखती है हमें बचाकर<br />
ले जाता रोज माली तोडकर न जाने कितने फ़ूल बगीचे से<br />
फ़िर भी खिलते ही हैं फ़ूल, वही ताज़गी और खुश्बू लेकर<br />
*******<br />
<br />
इससे पहले कि आंखों के मोती, किरकिर हो जाए<br />
इससे पहले कि सपनों के महल, खण्डहर हो जाए<br />
हम टटोल लें अपनी अपनी ज़मीं आसमां<br />
जाने कब यह अब्र सा दिन, कब्र सी सहर हो जाए<br />
<br />
<br />
कितने हीं जवाब दूं तुम्हारे सवाल खतम न होंगे<br />
कितना ही हिसाब दूं तुमको हज़म न होंगे<br />
रिश्ता कुछ ऎसा ही हो गया है हमारा<br />
चाहे जितना पास हों, फ़ासले कम न होंगे<br />
*******<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-71773780736812705522011-05-18T09:04:00.000-07:002011-05-18T09:04:51.505-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
उदासियों के भार ढोने नहीं देती<br />
आंखें मेरी मुझको, रोने नहीं देती<br />
आते हैं जाने कितने ही तूफ़ां<br />
हौसला ओ जिद कश्ती डूबोने नहीं देती<br />
<div>*******</div><div><br />
</div><div><div>हर वक्त किसी न किसी जोड-तोड, जुगाड में रहते हैं</div><div>किसी को थापने और किसी को उखाड में रहते हैं</div><div>सब कायल हैं उनकी काबलियत के यारों!</div><div>किसी सरकार के नहीं हैं, पर सरकार में रहते हैं</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>कितने खुशकिस्मतों को नसीब है हंसी</div><div>जाने कितनों की जान, कहां कहां फ़ंसी</div><div>नसीबों की बात, किसी को आती नहीं हंसी </div><div>किसी की रुकती नहीं हंसी</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>हौसलों के हमने अपने पर जो फ़डफ़डाए,</div><div>आसमां से भी आगे कई आसमां नजर आए</div><div>जितना आजमाना है आजमाले ऎ तकदीर</div><div>डर है हमारे हौसलों से, कहीं तू ही न डर जाए</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>किसी को हमारी याद आती नहीं</div><div>किसी की याद हम से जाती नहीं</div><div>कुछ ऎसी ही खामख्वाह वजहों की वजह से</div><div>नींद रात भर आती नहीं</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>न जाने उनके कितने झूठ पकडे जाते रहे</div><div>फ़िर भी वे सच का झंडा लिए मंचों की शोभा बढाते रहे</div><div>सारी अदालतों के फ़ैसलों के खिलाफ़</div><div>तथाकथित ईमानदारी पर मदमदाते रहे</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>तुम्हारा तो मकसद ही हमेशा बिखेरना रहा है</div><div>और मेरी कोशिशें हमेशा सम्भलना रहा है</div><div>तुमने कभी कोई कमी नहीं रखी कहने और सुनाने में</div><div>मेरा तो स्वभाव ही सुनना, चुप रहना, सहना रहा है</div><div>*******</div></div><div><br />
</div><div><br />
</div><div><br />
</div></div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-74515093309653626622011-04-28T09:48:00.000-07:002011-04-28T09:48:22.627-07:00मसखरों के बीच कैसे, उदासी बांटी जाए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
मां तो सिर्फ़ औलाद पैदा करती है<br />
इंसान और सिर्फ़ इंसानियत पैदा करती है<br />
दुनियां ही देती है उन्हें मजहबी तमगे और जातियां<br />
दुनियां ही दिलों में नफ़रत पैदा करती है<br />
<div>*******</div><div><br />
</div><div><div>सारे गम सह गए होते, अगर आंसू बह गए होते</div><div>उन्होंने रोका, टोका न होता..क्या क्या कह गए होते</div><div>बहुत मुश्किल थे सवालात इश्किया परचे के</div><div>जवाब आते होते तो हम भी पास हो गए होते</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>मसखरों के बीच कैसे, उदासी बांटी जाए</div><div>दादुरों के बीच कैसे खामोशी बांटी जाए..</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>सुबकते बच्चे को थपकियां दे सुलाया मैंने</div><div>प्यारभरी लोरी गा गुमशुदा नींद को बुलाया मैंने</div><div>अपने मन उजियाले सपनों का दीया जला</div><div>कलमुहीं रात को खूब चिढाया मैंने</div><div>*******</div></div><div><br />
</div><div><div>हाथ बंधा दीजिए, बेजुबां कीजिए</div><div>हस्ती मिटा दीजिए, ज़मींदोज कीजिए</div><div>एक दिन तो सच का मुतमुइन है </div><div>चाहे जितनी दीवारें चुना दीजिए</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>बेबस और लाचार होता जा रहा है</div><div>आदमी औज़ार होता जा रहा है</div><div>रिश्तों की कडवाहट और खुदगर्जी से </div><div>घर भी अपना बाज़ार होता जा रहा है</div></div><div>*******</div><div><br />
</div><div><div>उडनेवालों को ज़मीन पर आना ही पडता है</div><div>अनंत महाविराट के सामने आखिर सर झुकाना ही पडता है</div><div>हिमालय से शिखर के साथ सागर की अतल गहराई भी है</div><div>औकात को अपनी औकात में आना ही पडता है</div></div><div><br />
</div><div><br />
</div><div><br />
</div><div><br />
</div></div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-76285916743075076972011-04-15T09:47:00.000-07:002011-04-15T09:47:39.761-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<br />
<br />
सुबह से शाम सब के साथ खटते खटते<br />
कितना थक जाता है दिन<br />
इसीलिए यूं ही धाडी के मजूर मानिंद<br />
बिना कहे-सुने चुपचाप ढल जाता है दिन<br />
<br />
*******<br />
<br />
कर न सका कुछ सिर्फ़ सोचता ही रह गया<br />
एक जरा सी चूक से जीवन ही बदल गया<br />
कोशिशें बहुत की मगर रोक न पाया<br />
पल भर भी न ठहरा वो पल निकल गया<br />
*******<br />
<br />
नीचे के ईश्वर ऊपर के ईश्वरों से बडे हैं<br />
इसीलिए तो सब उनकी सेवा में खडे हैं<br />
जिस पर हो कृपा, करे वारे-न्यारे<br />
जीवन नरक कर डाले जिस पर ये बिगडे हैं<br />
*******<br />
<br />
प्रेम के सारे फ़साने बदल डाले<br />
आइने दिखाने वाले आइने बदल डाले<br />
हमपेशा से ही करते हैं प्रेम, शादी<br />
पेशेवरों ने प्रेम के माने बदल डाले<br />
<br />
*******<br />
एक जिद के लिए ज़िंदगी से ठान ली<br />
एक जिद ने न जाने कितनी जिदें पहचान ली<br />
एक जिद पूरी करने के लिए<br />
एक जिद ने जान दी, एक जिद ने जान ली<br />
*******<br />
<br />
आंसुओं का अहसास<br />
सिर्फ़ गाल करते हैं<br />
लोग तो सिर्फ़ आंसुओं से<br />
सवाल करते हैं<br />
*******<br />
<br />
दर्पण कभी झूठ नहीं बोलते<br />
और हम कभी सच नहीं बोलते<br />
देखते रहते हैं अपने ही मुखोटै<br />
सच के नहीं कभी, चेहरे टटोलते<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-27074685400280742132011-04-01T21:37:00.000-07:002011-04-01T21:37:47.581-07:00रंगों की भाषा रंगबाज़ ही समझे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<br />
बागों के फ़ूल गमलों में ले आते हैं<br />
बागों को ही अपने भवनों में ले आते हैं<br />
कुछ लोग बहुत समझदार होते हैं<br />
पेड वही लगाते हैं, जिन पर ढेरों फ़ल आते हैं<br />
*******<br />
<br />
<div><div>यूं ही नहीं बहुत खास लिखे हैं</div><div>अल्फ़ाज़ नहीं दिल के अहसास लिखे हैं</div><div>जानते हैं तुम दूर हो हम से, बहुत दूर</div><div>फ़िर भी हमने अपने दिल के पास लिखे हैं</div><div>*******</div></div><div><div>सिर्फ़ देह नहीं जीवन की धूरी है स्त्री</div><div>अधूरा सिर्फ़ पुरुष, पूरी है स्त्री</div><div>स्त्री के हृदय में रमते हैं देव</div><div>करुणा,प्रेम, समर्पण, मजबूरी है स्त्री </div><div>*******</div><div><br />
</div><div>खुद को कर आग के हवाले</div><div>हर चराग बांटता फ़िरता उजाले</div><div>पर नामुराद हवाएं कब समझेगी</div><div>उजालों को बचाते पड जाते हैं हाथों में छाले</div><div>*******</div><div><br />
</div><div>सब कुछ मिल जाता है जहां में</div><div>सिर्फ़ मुहब्बत को ही, मुहब्बत नहीं मिलती</div><div>हर फ़ूल लिए है खिलने, खुश्बू बिखेरने की चाह</div><div>पर बागवानों की रहमत और किस्मत नहीं मिलती</div><div>******* </div><div><br />
</div><div>घर तो आखिर घर होता है</div><div>घर के बिना कहां गुज़र होता है</div><div>लोग आते-जाते रहते हैं घरों से</div><div>घर ताज़िंदगी हम सफ़र होता है</div><div>नाप ले पंछी कितने भी आसमां</div><div>लौटता है वहीं, जहां घर होता है</div><div>बदकिस्मत वे जिनके घर नहीं होते</div><div>घर, घर नहीं परिवार का मंदर होता है</div><div>*******</div><div><br />
</div><div>बेरंग भी एक रंग होता है</div><div>रंग को समझने का एक ढंग होता है</div><div>रंगों की भाषा रंगबाज़ ही समझे </div><div>क्यूंकि रंग तो आखिर रंग होता है </div></div><div><br />
</div><br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-82907949743954544602011-03-09T08:30:00.000-08:002011-03-09T08:30:55.603-08:00घर तो आखिर घर होता है/ घर के बिना कहां गुज़र होता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<br />
<br />
हम ही ईश्वर हम ही पुजारी<br />
हम ही राजा हम ही भिखारी<br />
किसको पूजाएं किसको पजाएं<br />
हम ही शिकार. हम ही शिकारी<br />
*******<br />
<div><br />
</div><br />
सिर्फ़ देह नहीं जीवन की धूरी है स्त्री<br />
अधूरा सिर्फ़ पुरुष, पूरी है स्त्री<br />
स्त्री के हृदय में रमते हैं देव<br />
करुणा,प्रेम, समर्पण, मजबूरी है स्त्री<br />
*******<br />
<br />
खुद को कर आग के हवाले<br />
हर चराग बांटता फ़िरता उजाले<br />
पर नामुराद हवाएं कब समझेगी<br />
उजालों को बचाते पड जाते हैं हाथों में छाले<br />
*******<br />
<br />
सब कुछ मिल जाता है जहां में<br />
सिर्फ़ मुहब्बत को ही, मुहब्बत नहीं मिलती<br />
हर फ़ूल लिए है खिलने, खुश्बू बिखेरने की चाह<br />
पर बागवानों की रहमत और किस्मत नहीं मिलती<br />
*******<br />
<br />
घर तो आखिर घर होता है<br />
घर के बिना कहां गुज़र होता है<br />
लोग आते-जाते रहते हैं घरों से<br />
घर ताज़िंदगी हम सफ़र होता है<br />
नाप ले पंछी कितने भी आसमां<br />
लौटता है वहीं, जहां घर होता है<br />
बदकिस्मत वे जिनके घर नहीं होते<br />
घर, घर नहीं परिवार का मंदिर होता है<br />
*******<br />
<br />
बेरंग भी एक रंग होता है<br />
रंग को समझने का एक ढंग होता है<br />
रंगों की भाषा रंगबाज़ ही समझे<br />
क्यूंकि रंग तो आखिर रंग होता है<br />
*******<br />
<br />
यूं ही नहीं बहुत खास लिखे हैं<br />
अल्फ़ाज़ नहीं दिल के अहसास लिखे हैं<br />
जानते हैं तुम दूर हो हम से, बहुत दूर<br />
फ़िर भी हमने अपने दिल के पास लिखे हैं<br />
*******<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-3642095355039417972011-03-03T07:30:00.000-08:002011-03-03T07:30:23.964-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
गलतफ़हमियों के शिकार हो गए<br />
रिश्तों के बंद कई द्वार हो गए<br />
गलतफ़हमियों के चपेट में आ<br />
अच्छे भले लोग बीमार हो गए<br />
*******<br />
<br />
सच कहने, सुनने की हिम्मत ढूंढ रहा हूं<br />
चेहरे चेहरे पर सच्ची चाहत ढूंढ रहा हूं<br />
जानता हूं मुश्किल है पर असंभव नहीं<br />
स्लम डाग के लिए मिलियनी हकीकत ढूंढ रहा हूं<br />
*******<br />
<br />
कुछ सवालों के उत्तर नहीं होते<br />
कुछ रिश्ते बाहर के भीतर नहीं होते<br />
उन कंगूरों का भरोसा क्या करें<br />
नींव में जिनके पत्थर नहीं होते<br />
*******<br />
<br />
यार को यार का ना ऎतबार चाहिए<br />
दो और लो, ना इंतज़ार चाहिए<br />
बहुत हाईटेक प्यार है आज का<br />
बात बात पर उपहार चाहिए<br />
*******<br />
<br />
बीडी जलाने से शुरु होकर बात<br />
मुन्नी की बदनामी<br />
और शीला की ज़वानी तक<br />
आ पहुंची है<br />
क्या कोई बता सकता है<br />
हमारी सोच<br />
कहां आ पहुंची है?<br />
*******<br />
<br />
खामोशियां जब ज़ुंबा खोलती है<br />
हकीकतें कोने टटोलती है<br />
एक के बाद एक खुलते जाते हैं पर्दे<br />
जब आप उनके सामने और वो आपके सामने होती है<br />
*******<br />
<br />
कुछ रिश्तों को भरोसा दिलाना मुश्किल है<br />
कितना भी करो, निभना-निभाना मुश्किल है<br />
ज़िंदगी बीत जाती है यूं ही रोते झींकते<br />
उनके संदेहों से पार पाना मुश्किल है<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-85787736108627747732011-02-21T07:37:00.000-08:002011-02-21T07:37:29.972-08:00सांस और दिल का अज़ीब अहम रिश्ता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बातों ही बातों में बात निकल आती है<br />
एक दो नहीं कई साथ निकल आती है<br />
कितने ही लोकों, लोगों से साक्षात कराती<br />
हर ऊंचाई गहराई नापती चली जाती है<br />
*******<br />
<br />
खरबों के तिरुपति, अरबों के सांई<br />
श्रद्दा,भक्ति में कमी कहीं ना आई<br />
लानत है भिखमंगों पर<br />
वहीं के वहीं है भाई!!<br />
*******<br />
<br />
सांस और दिल का अज़ीब अहम रिश्ता है<br />
एक हिलाता है एक हिलता है<br />
सांस तो सभी के पास मिल जाती हैं मगर<br />
दिल बहुत मुश्किल से मिलता है<br />
*******<br />
<br />
आशिकों के भरोसे बहुत नाज़ुक होते हैं<br />
बहुत ही सिरफ़िरे माशूका माशूक होते हैं<br />
मज़ाल है बिना पूछे सांस भी ले<br />
दोनों तरफ़ हाथों में चाबुक होते हैं<br />
*******<br />
<br />
गोदने की मांनिद<br />
बहुत ही बेरहमी से रौंदा ऎसे?<br />
ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं<br />
खालिस मिट्टी का घरौंदा हो जैसे<br />
*******<br />
<br />
ज़िंदगी का कोई भी पल दिन महिना साल<br />
साधारण नहीं होता<br />
हर बीता पल दिन महिना साल असाधारण है<br />
जो जीने का<br />
अगला पल दिन महिना साल देता<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-79689622331219552982011-02-06T08:20:00.000-08:002011-02-06T08:20:05.197-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अपनी आंखों में उसे मेरा चेहरा दिखता है<br />
मुझे अपनी आंखों में उसका पहरा दिखता है<br />
सच! यह प्यार है कि बिसात कोई<br />
अपना ही वजूद कोई मोहरा दिखता है<br />
*******<br />
<br />
इस ठंड का भी कोई जवाब नहीं<br />
कितना और ठंडाएगी हिसाब नहीं<br />
क्या बताएं किस तरह गुजर रही है<br />
हम बर्फ़ में लगें हैं, आपका साथ नहीं<br />
*******<br />
<br />
हर आहट पर उनका गुमां होता है<br />
आग वहां होगी ही, जहां धुंआ होता है<br />
हम क्या बताएं आपको हमारा पता<br />
हम वहीं होते हैं, वह जहां होता है<br />
*******<br />
<br />
देखती है पर होलै से छुप छुप कर देखती है<br />
थोडी थोडी देर में रुक रुक के देखती है<br />
कुछ आंखों से जब हटती ही नहीं आंखें<br />
आंखें उन आंखों को झुक झुक के देखती है<br />
*******<br />
<br />
दुआ है, सिर्फ़ लम्बाई में ही नहीं<br />
आदमियत में भी बडा हो<br />
बेटा आपका, आपकी उम्मीदों में भी<br />
बडा हो..<br />
करे अच्छे काम, बडा नाम कमाए!<br />
सबको लगे प्यारा, सबके मन बस जाए!<br />
*******<br />
<br />
इस तरफ़ कि उस तरफ़<br />
ना जाने किस तरफ़<br />
हर राह का मुकाम एक<br />
चले जाओ जिस तरफ़<br />
*******<br />
<br />
राहों को कभी मंज़िल नहीं समझा<br />
मुश्किलों को कभी मुश्किल नहीं समझा<br />
दरिया में उतर कर ही पहुंचते हैं पार<br />
किनारों को कभी साहिल नहीं समझा<br />
*******<br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-36848842896436141442011-01-29T08:19:00.001-08:002011-01-29T08:19:58.413-08:00वह जो कभी साथ दिखती है, कभी छुप जाती है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
वह जो कभी साथ दिखती है, कभी छुप जाती है<br />
सिर्फ़ छाया होती है<br />
हमें मुगालते में रखनेवाली<br />
हमारी ही सिरफ़िरी काया होती है<br />
*******<br />
<br />
सदाएं जब बेताब हो जाती हैं<br />
चाहतें इंकलाब हो जाती है<br />
हर सांस एक ज़िंदगी हो जाती है<br />
ख्वाहिशें आफ़ताब हो जाती है<br />
*******<br />
<br />
सपनें अच्छे होते हैं<br />
मगर बहुत कम सच्चे होते हैं<br />
सपनें देखिए पर उनके पीछे भागिए मत<br />
सपनों के घर बहुत कच्चे होते हैं<br />
*******<br />
<br />
भ्रष्ट ताज भ्रष्ट राज<br />
भ्रष्ट व्यवस्था भ्रष्ट काज<br />
*******<br />
<br />
खूबसूरती भी बन जाती है <br />
खुद अपनी मौत का सामान<br />
हर फ़ूल खूबसूरत होता है<br />
टूटने से पहले<br />
******<br />
<br />
<br />
<br />
कुछ भी पूछ लीजिए पर<br />
सच भूल कर भी नहीं<br />
बता दीजिए कुछ भी मगर<br />
सच भूल कर भी नहीं<br />
*******<br />
<br />
यारों की बगावतें होती हैं प्यारी<br />
यारों में ही तो बसती है जान हमारी<br />
ये हम में और हम इन में एकमेक<br />
हम ही शिकार, हम ही शिकारी<br />
*****<br />
<div><br />
</div></div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-13188145273529258522011-01-10T07:51:00.000-08:002011-01-10T07:51:44.939-08:00हैं खासमखास पर<br />
जब तब बंदूकें तान लेते हैं<br />
यार सरे बाज़ार मेरे<br />
दोस्ती का इम्तिहान लेते हैं<br />
*******<br />
<br />
इतने चेहरों की भीड यहां पर<br />
पर कितनों का चेहरा है अपना<br />
कितने चेहरे, कितने मुखौटे<br />
मुश्किल असल चेहरे परखना<br />
*******<br />
<br />
क्यूं ऎसी मायूसी क्यूं ऎसे खयाल<br />
क्या हो गया ऎसा जो हुआ ये हाल<br />
रखिए संभाल अस्तित्त्व की नींव को<br />
आप ही तो हैं काल के महाकाल<br />
*******<br />
<br />
खिले कांटों में गुलाब ज्यूं<br />
मैं तुम में खिला<br />
तुम अपरिचित ही रहे<br />
मैं रोज़ तुमसे मिला<br />
*******<br />
<br />
झूठ से हमेशा बच, लिखता हूं<br />
टुकडे टुकडे ही सही, सच, सच लिखता हूं<br />
मैं तमाशा नहीं कि देखे कोई<br />
अपनी धुन में रहता हूं, अपने ही जैसा दिखता हूं<br />
<br />
*******<br />
<br />
ज़िंदगी में प्यार, यार जरूरी होता है<br />
दिल के सुकूं के लिए एक दिलदार जरूरी होता है<br />
हकूमत करने और दिखाने के लिए<br />
एक दरबान जरूरी होता है<br />
*******<br />
<br />
इतने बेचारे क्यूं हैं हम<br />
किसी के सहारे क्यूं हैं हम<br />
तुमने तो कभी हमें समझा न अपना<br />
फ़िर भी सिर्फ़ तुम्हारे क्यूं हैं हम<br />
*******नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-7543756634587027292010-12-15T07:40:00.000-08:002010-12-15T07:40:04.363-08:00खिडकी बंद, दरवाज़े बंद<br />
सांसों की आवाज़ें बंद<br />
मर रहे हैं आदमी,<br />
आदमी की है आंखें बंद<br />
*******<br />
<br />
हमाम अपने ही खोलें कौन<br />
आइनें बोलें भी तो सुनें कौन<br />
सब जानते हैं सच क्या है, कहां है<br />
झूठों की हजूरी में, सच सच चुनें कौन<br />
*******<br />
<br />
मैं जो कहूं, वही सही<br />
मैं जो करुं, वही सही<br />
क्या करें ऎसे अहमकों का<br />
जो दिमाग का करे दही<br />
*******<br />
<br />
क्या कहूं, किससे कहूं<br />
क्या पूछूं, किससे पूछूं<br />
सब व्यस्त हैं,मैं भी<br />
सबको सुनाऊं, सबकी सुनूं<br />
सब सुनते हैं, सब सुनाते हैं<br />
सब अभ्यस्त हैं, मैं भी<br />
******<br />
<br />
उसे मुझ से क्या मिला वह जाने<br />
पर मैंने जो उससे पाया, बहुत खास है<br />
उसे मुझ पर यकीं हो न हो मगर<br />
मेरी हर सांस की वही अगली सांस है<br />
*******<br />
<br />
ये क्या कम हैं<br />
हौसला करते तो हैं<br />
पर काट दिए हैं फ़िर भी<br />
परिंदे उडने की कोशिश<br />
करते तो हैं<br />
*******<br />
<br />
हवालात कोई भी हो, लाजवाब होती है<br />
क्यूंकि हवालातों से ही ज़िंदगी इंकलाब होती है<br />
एक आज़माइश का अंत<br />
एक मकसद की शुरुआत होती है<br />
*******नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-80349594311259394022010-12-05T09:21:00.000-08:002010-12-05T09:21:11.121-08:00नहीं कोई दरख्त ही राह में<br />
छांह कहां से लाऊं<br />
धूप में झुलसना ही किस्मत है<br />
झलता जाऊं..चलता जाऊं<br />
*******<br />
<br />
बिना पतवारों के किश्तियां<br />
नहीं पहुंचती पार<br />
किसी भी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए<br />
एक अदद सीढी की तो होती ही है दरकार<br />
*******<br />
<div><div><br />
</div><div>इस मुलाकात का जवाब नहीं</div><div>मैं हूं, वो है, संवाद नहीं.</div><div>मैं कुछ भी न भूल पाया पर</div><div>उसे कुछ भी याद नहीं</div><div>*******</div></div><div><div><br />
</div><div>मज़ाक उनसे अच्छा, जो आपसे मज़ाक करे</div><div>मज़ाक करते वक्त लोग, अक्सर ये भूल जाते हैं</div><div>मज़ाक ही मज़ाक में हो जाता है क्या से क्या</div><div>जब गुजरती है खुद पर तब हम पछताते हैं</div><div>*******</div><div><br />
</div><div>कुछ लोग मज़ाक में हद भूल जाते हैं</div><div>खुद का और सामनेवाले का कद भूल जाते हैं</div><div>मज़ाक करनेवालों को मज़ाक सहना भी आना चाहिए</div><div>मज़ाक का ये सबसे बडा ऊसूल भूल जाते हैं</div><div>*******</div></div><div><br />
</div><div><div>ए खुदा जितना भी कर सके, कमाल कर</div><div>ज़िंदगी बदतर बदहाल कर</div><div>रखते हैं हुनर हम, हर हाल में जीने का</div><div>तू चाहे जितना, आकाश पाताल कर.</div><div>*******</div><div><br />
</div><div>ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती</div><div>अपने हाथ इसकी कमान नहीं होती</div><div>हम सब कठपुतलियां अपने अपने समय की</div><div>हमारे बस हमारी जान नहीं होती</div><div>*******</div></div><div><br />
</div><div><br />
</div><div><br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-72872005604481027022010-12-02T08:15:00.000-08:002010-12-02T08:16:10.390-08:00पी लेना गरल इतना आसान नहीं है<br />
हो जाना मीरा इतना आसान नहीं है<br />
तपना पडता है अगन में सोने को<br />
आभूषण में ढलने के लिए<br />
पराई आग में खुद को जलाना<br />
इतना आसान नहीं है<br />
*******<br />
<br />
<br />
चांद को जब देखा चांद ने<br />
चांद से कुछ कहा चांद ने<br />
लोग पूछते पूछते खुद चांद हो गए<br />
चांद ने किसी को न बताया क्या कहा चांद ने<br />
*******<br />
<br />
<br />
तुम्हारी यादों की आहटों से<br />
उचक उचक जाता है मन<br />
कहां हो तुम, तुम्हें बुलाता है<br />
तुम्हारा तलबगार मन<br />
*******<br />
<br />
<br />
<br />
आचार बिना विचार है क्या<br />
आकार बिना निराकार है क्या<br />
पराजय बिना जयकार है क्या<br />
अस्वीकार बिना स्वीकार है क्या<br />
*******<br />
<br />
<br />
आंखों पर लगा लिया विलायती चश्मा<br />
कैसे देखे बेचारा देसी ज़मीं आसमां<br />
खोया रहता है हमेशा बुकर के सपनों में<br />
लिखता है वह जिसका नहीं सिर-पैर-ज़ुबां<br />
*******<br />
<br />
<br />
<br />
उफ़! क्या करें इस कलम का<br />
लिख ही नहीं पाती दिल के हालात<br />
काश कागज़ में ही हो ऎसी करामात<br />
पढ लें वो मिरे दिल के ज़ज़्बात<br />
*******<br />
<br />
<br />
तुमसे जुडा मैं और शब्द हो गया<br />
इस जुडाव से मेरा एक अर्थ हो गया<br />
जहां जहां पहुंचे मेरा यह अर्थ<br />
जीवन का पूरा मनोरथ हो गया<br />
<div>*******</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-91183302829650141192010-11-27T21:43:00.000-08:002010-11-27T21:43:32.695-08:00कौन याद करता है, कौन याद आता है<br />
यादें हार जाती हैं वक्त जीत जाता है<br />
*******<br />
<br />
हो गई सरे बाज़ार जग हंसाई मेरी<br />
जब छोड के चला गया वो कलाई मेरी<br />
हुई न थी ऎसी भी उससे लडाई मेरी<br />
रोके से भी ना रुकी रुलाई मेरी<br />
*******<br />
<br />
कितने लोग, पढते हैं खुद को<br />
पूरी की पूरी जमात जुटी है<br />
औरों को पढाने में<br />
कितने लोग, आजमाते हैं खुद को<br />
पूरी की पूरी जमात जुटी हैं<br />
औरों को आजमाने में<br />
*******<br />
<br />
<br />
<br />
कुछ लोगों ने ज़िंदगी को ये अर्थ दिए<br />
आज़ाद परिंदे कैद कर लिए<br />
कर न सके फ़िर कभी उडने का हौसला<br />
पिंज़रों में भी उनके पर कतर दिए<br />
*******<br />
<br />
नींद में इधर उधर<br />
हाथ पैर चलाते हैं<br />
ख्वाबों वो हमें अक्सर<br />
यूं छेड जाते हैं<br />
*******<br />
<br />
मिलते हैं सच्चे दोस्त<br />
ज़िंदगी में नसीब से<br />
समझे जो दोस्त और दोस्ती को<br />
दिल के करीब से<br />
******<br />
<br />
ज़िंदगी इस तरह जिया कीजिए<br />
बस प्यार ही प्यार किया कीजिए<br />
कोई आप को कुछ दे कि न दे<br />
आप सभी को अपना प्यार दिया कीजिए<br />
*******<br />
<div><br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-83245729704280147832010-11-22T08:28:00.000-08:002010-11-22T08:30:47.426-08:00बिटिया चांद सी बेटा चांद सा<br />
दो प्रेमियों का जोडा चांद सा<br />
चांद मालूम भी न होगा<br />
धरती पर क्या क्या है चांद सा<br />
*******<br />
लोगों के लिए इतना करते लोग<br />
लोगों के लिए जीते मरते लोग<br />
लोगों को देख घबरा जाते हैं<br />
लोगों से कितना डरते लोग<br />
*******<br />
उम्र बीत जाती है मंजिलों की चाह में<br />
मंजिल होती ही नहीं कोई ज़िंदगी की राह में<br />
हर थकान पर कुछ सुस्ताना ठीक रहता है<br />
आगे का सफ़र ठीक रहता है<br />
<div>*******</div><div><div>किस में अपनी आस्था मानूं</div><div>किधर अपना रास्ता जानूं</div><div>हर शै बदल रही है फ़ैशन की तरह</div><div><div>किस फ़ैशन में खुद को ढालूं, अपना वजूद बचालूं</div></div><div>*******</div><div>ज़िंदगी खतम हुई कि सांस की आवा-जाही पता नहीं</div><div>सोच खतम हुई कि कलम की स्याही पता नहीं</div><div>इतना तो पता है कि खतम हुआ है कुछ</div><div>पर कहां कहां क्या क्या खतम हुआ पता नहीं</div><div>*******</div><div>कहां कहां फ़िसला, कहां कहां अडा होगा</div><div>जब वह अपने पैरों पर खडा होगा</div><div>कितनी मुश्किलों से लडा होगा</div><div>तब कहीं जाकर बडा होगा</div><div>*******</div><div>शब्दों से मत खेलो यार</div><div>शब्द बाण है शब्द व्यवहार</div><div>शब्दों से हो गया महाभारत</div><div>गीता शब्दों का चमत्कार</div><div>*******</div><div><br />
</div></div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4896905739148382602.post-44476277767316411682010-11-20T07:36:00.000-08:002010-11-20T07:36:42.039-08:00फ़ूलों की ताज़गी कब तलक<br />
वक्त के साथ मुरझा जानी है<br />
खुश्बुओं की भी एक उम्र है अपनी<br />
उसके बाद सिर्फ़ हवा रह जानी हैं<br />
<div>*******</div><div><div>किस प्यार का गम, काहे का बहाना सनम</div><div>क्यूं किस्मत को कोसें क्यूं पालें कोई भरम</div><div>दिल तो होता ही है टूटने के लिए</div><div>क्यूं बार बार रोएं क्यूं गमजदां हों हम</div></div><div>*******</div><div><div>आंखों से बहते बहते अचानक</div><div>रुक गया पानी</div><div>किसी आंख के लिए</div><div>जैसे झुक गया पानी</div></div><div>*******</div><div><div>कितना मूर्ख है दोस्ती वफ़ा की बात करता है</div><div>इस ज़माने में उस ज़माने की बात करता है</div><div>दोस्ती और वफ़ाएं कहां है आजकल</div><div>महज वक्तगुज़ार(टाईमपास) सिलसिलें हैं आजकल</div></div><div>*******</div><div><div>लिखें वह जो पढे कोई</div><div>कहें वह जो सुनें कोई</div><div>क्या इतना काफ़ी नहीं होगा?</div><div>सन्नाटों को हराने के लिए</div></div><div>*******</div><div><div>दोस्ती दर्द से हमने कर ही ली आखिर</div><div>खा ही लिया सीने पर ये ज़हरबुझा तीर आखिर</div><div>देख लिए तुम्हारी चाहत के तमाम ज़लवे </div><div>देखते हैं और क्या क्या दिखाती है तकदीर आखिर</div></div><div>*******</div><div>खयालों में ही खामख्वाह खयाल आया है</div><div>खयालों को भला कौन पकड पाया है</div><div>खयालों को गिरफ़्तार करने की बात करता है</div><div>लगता है यार! खयालों से ही मात खाया है</div><div>*******</div><div><br />
</div>नवनीत पाण्डेhttp://www.blogger.com/profile/14332214678554614545noreply@blogger.com0