हम ही ईश्वर हम ही पुजारी
हम ही राजा हम ही भिखारी
किसको पूजाएं किसको पजाएं
हम ही शिकार. हम ही शिकारी
*******
सिर्फ़ देह नहीं जीवन की धूरी है स्त्री
अधूरा सिर्फ़ पुरुष, पूरी है स्त्री
स्त्री के हृदय में रमते हैं देव
करुणा,प्रेम, समर्पण, मजबूरी है स्त्री
*******
खुद को कर आग के हवाले
हर चराग बांटता फ़िरता उजाले
पर नामुराद हवाएं कब समझेगी
उजालों को बचाते पड जाते हैं हाथों में छाले
*******
सब कुछ मिल जाता है जहां में
सिर्फ़ मुहब्बत को ही, मुहब्बत नहीं मिलती
हर फ़ूल लिए है खिलने, खुश्बू बिखेरने की चाह
पर बागवानों की रहमत और किस्मत नहीं मिलती
*******
घर तो आखिर घर होता है
घर के बिना कहां गुज़र होता है
लोग आते-जाते रहते हैं घरों से
घर ताज़िंदगी हम सफ़र होता है
नाप ले पंछी कितने भी आसमां
लौटता है वहीं, जहां घर होता है
बदकिस्मत वे जिनके घर नहीं होते
घर, घर नहीं परिवार का मंदिर होता है
*******
बेरंग भी एक रंग होता है
रंग को समझने का एक ढंग होता है
रंगों की भाषा रंगबाज़ ही समझे
क्यूंकि रंग तो आखिर रंग होता है
*******
यूं ही नहीं बहुत खास लिखे हैं
अल्फ़ाज़ नहीं दिल के अहसास लिखे हैं
जानते हैं तुम दूर हो हम से, बहुत दूर
फ़िर भी हमने अपने दिल के पास लिखे हैं
*******
0 comments:
Post a Comment