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10/01/2011

हैं खासमखास पर
जब तब बंदूकें तान लेते हैं
यार सरे बाज़ार मेरे
दोस्ती का इम्तिहान लेते हैं
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इतने चेहरों की  भीड यहां पर
पर कितनों का चेहरा है अपना
कितने चेहरे, कितने मुखौटे
मुश्किल असल चेहरे परखना
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क्यूं ऎसी मायूसी क्यूं ऎसे खयाल
क्या हो गया ऎसा जो हुआ ये हाल
रखिए संभाल अस्तित्त्व की नींव को
आप ही तो हैं काल के महाकाल
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खिले कांटों में गुलाब ज्यूं
मैं तुम में खिला
तुम अपरिचित ही रहे
मैं रोज़ तुमसे मिला
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झूठ से हमेशा बच, लिखता हूं
टुकडे टुकडे ही सही, सच, सच लिखता हूं
मैं तमाशा नहीं कि देखे कोई
अपनी धुन में रहता हूं, अपने ही जैसा दिखता हूं

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ज़िंदगी में प्यार, यार जरूरी होता है
दिल के सुकूं के लिए एक दिलदार जरूरी होता है
हकूमत करने और दिखाने के लिए
एक दरबान जरूरी होता है
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इतने बेचारे क्यूं हैं हम
किसी के सहारे क्यूं हैं हम
तुमने तो कभी हमें समझा न अपना
फ़िर भी सिर्फ़ तुम्हारे क्यूं हैं हम
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1 comments:

सुनील गज्जाणी said...

अच्छे संदेशो के लिए साधुवाद

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