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27/11/2010

कौन याद करता है, कौन याद आता है
यादें हार जाती हैं वक्त जीत जाता है
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हो गई सरे बाज़ार जग हंसाई मेरी
जब छोड के चला गया वो कलाई मेरी
हुई न थी ऎसी भी उससे लडाई मेरी
रोके से भी ना रुकी रुलाई मेरी
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कितने  लोग, पढते हैं खुद को
पूरी की पूरी जमात जुटी है
औरों को पढाने में
कितने लोग, आजमाते हैं खुद को
पूरी की पूरी जमात जुटी हैं
औरों को आजमाने में
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कुछ लोगों ने ज़िंदगी को ये अर्थ दिए
आज़ाद परिंदे कैद कर  लिए
कर न सके फ़िर कभी उडने का हौसला
पिंज़रों में भी उनके पर कतर दिए
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नींद में इधर उधर
हाथ पैर चलाते हैं
ख्वाबों वो हमें अक्सर
यूं छेड जाते हैं
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मिलते हैं सच्चे दोस्त
ज़िंदगी में नसीब से
समझे जो दोस्त और दोस्ती को
दिल के करीब से
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ज़िंदगी इस तरह जिया कीजिए
बस प्यार ही प्यार किया कीजिए
कोई आप को कुछ दे कि न दे
आप सभी को अपना प्यार दिया कीजिए
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22/11/2010

बिटिया चांद सी बेटा चांद सा
दो प्रेमियों का जोडा चांद सा
चांद मालूम भी न होगा
धरती पर क्या क्या है चांद सा
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लोगों के लिए इतना करते लोग
लोगों के लिए जीते मरते लोग
लोगों को देख घबरा जाते हैं
लोगों से कितना डरते लोग
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उम्र बीत जाती है मंजिलों की चाह में
मंजिल होती ही नहीं कोई ज़िंदगी की राह में
हर थकान पर कुछ सुस्ताना ठीक रहता है
आगे का सफ़र ठीक रहता है
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किस में अपनी आस्था मानूं
किधर अपना रास्ता जानूं
हर शै बदल रही है फ़ैशन की तरह
किस फ़ैशन में खुद को ढालूं, अपना वजूद बचालूं
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ज़िंदगी खतम हुई कि सांस की आवा-जाही पता नहीं
सोच खतम हुई कि कलम की स्याही पता नहीं
इतना तो पता है कि खतम हुआ है कुछ
पर कहां कहां क्या क्या खतम हुआ पता नहीं
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कहां कहां फ़िसला, कहां कहां अडा होगा
जब वह अपने पैरों पर खडा होगा
कितनी मुश्किलों से लडा होगा
तब कहीं जाकर बडा होगा
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शब्दों से मत खेलो यार
शब्द बाण है शब्द व्यवहार
शब्दों से हो गया महाभारत
गीता शब्दों का चमत्कार
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20/11/2010

फ़ूलों की ताज़गी कब तलक
वक्त के साथ मुरझा जानी है
खुश्बुओं की भी एक उम्र है अपनी
उसके बाद सिर्फ़ हवा रह जानी हैं
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किस प्यार का गम, काहे का बहाना सनम
क्यूं किस्मत को कोसें क्यूं पालें कोई भरम
दिल तो होता ही है टूटने के लिए
क्यूं बार बार रोएं क्यूं गमजदां हों हम
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आंखों से बहते बहते अचानक
रुक गया पानी
किसी आंख के लिए
जैसे झुक गया पानी
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कितना मूर्ख है दोस्ती वफ़ा की बात करता है
इस ज़माने में उस ज़माने की बात करता है
दोस्ती और वफ़ाएं कहां है आजकल
महज वक्तगुज़ार(टाईमपास) सिलसिलें हैं आजकल
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लिखें वह जो पढे कोई
कहें वह जो सुनें कोई
क्या इतना काफ़ी नहीं होगा?
सन्नाटों को हराने के लिए
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दोस्ती दर्द से हमने कर ही ली आखिर
खा ही लिया सीने पर ये ज़हरबुझा तीर आखिर
देख लिए तुम्हारी चाहत के तमाम ज़लवे 
देखते हैं और क्या क्या दिखाती है तकदीर आखिर
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खयालों में ही खामख्वाह खयाल आया है
खयालों को भला कौन पकड पाया है
खयालों को गिरफ़्तार करने की बात करता है
लगता है यार! खयालों से ही मात खाया है
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