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15/12/2010

खिडकी बंद, दरवाज़े बंद
सांसों की आवाज़ें बंद
मर रहे हैं आदमी,
आदमी की है आंखें बंद
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हमाम अपने ही खोलें कौन
आइनें बोलें भी तो सुनें कौन
सब जानते हैं सच क्या है, कहां है
झूठों की हजूरी में, सच सच चुनें कौन
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मैं जो कहूं, वही सही
मैं जो करुं, वही सही
क्या करें ऎसे अहमकों का
जो दिमाग का करे दही
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क्या कहूं, किससे कहूं
क्या पूछूं, किससे पूछूं
सब व्यस्त हैं,मैं भी
सबको सुनाऊं, सबकी सुनूं
सब सुनते हैं, सब सुनाते हैं
सब अभ्यस्त हैं, मैं भी
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उसे मुझ से क्या मिला वह जाने
पर मैंने जो उससे पाया, बहुत खास है
उसे मुझ पर यकीं हो न हो मगर
मेरी हर सांस की वही अगली सांस है
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ये क्या कम हैं
हौसला करते तो हैं
पर काट दिए हैं फ़िर भी
परिंदे उडने की कोशिश
करते तो हैं
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हवालात कोई भी हो, लाजवाब होती है
क्यूंकि हवालातों से ही ज़िंदगी इंकलाब होती है
एक आज़माइश का अंत
एक मकसद की शुरुआत होती है
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05/12/2010

नहीं कोई दरख्त ही राह में
छांह कहां से लाऊं
धूप में झुलसना ही किस्मत है
झलता जाऊं..चलता जाऊं
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बिना पतवारों के किश्तियां
नहीं पहुंचती पार
किसी भी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए
एक अदद सीढी की तो होती ही है दरकार
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इस मुलाकात का जवाब नहीं
मैं हूं, वो है, संवाद नहीं.
मैं कुछ भी न भूल पाया पर
उसे कुछ भी याद नहीं
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मज़ाक उनसे अच्छा, जो आपसे मज़ाक करे
मज़ाक करते वक्त लोग, अक्सर ये भूल जाते हैं
मज़ाक ही मज़ाक में हो जाता है क्या से क्या
जब गुजरती है खुद पर तब हम पछताते हैं
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कुछ लोग मज़ाक में हद भूल जाते हैं
खुद का और सामनेवाले का कद भूल जाते हैं
मज़ाक करनेवालों को मज़ाक सहना भी आना चाहिए
मज़ाक का ये सबसे बडा ऊसूल भूल जाते हैं
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ए खुदा जितना भी कर सके, कमाल कर
ज़िंदगी बदतर बदहाल कर
रखते हैं हुनर हम, हर हाल में जीने का
तू चाहे जितना, आकाश पाताल कर.
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ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती
अपने हाथ इसकी कमान नहीं होती
हम सब कठपुतलियां अपने अपने समय की
हमारे बस हमारी जान नहीं होती
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02/12/2010

पी लेना गरल इतना आसान नहीं है
हो जाना मीरा इतना आसान नहीं है
तपना पडता है अगन में सोने को
आभूषण में ढलने के लिए
पराई आग में खुद को जलाना
इतना आसान नहीं है
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चांद को जब देखा चांद ने
चांद से कुछ कहा चांद ने
लोग पूछते पूछते खुद चांद हो गए
चांद ने किसी को न बताया क्या कहा चांद ने
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तुम्हारी यादों की आहटों से
उचक उचक जाता है मन
कहां हो तुम, तुम्हें बुलाता है
तुम्हारा तलबगार मन
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आचार बिना विचार है क्या
आकार बिना निराकार है क्या
पराजय बिना जयकार है क्या
अस्वीकार बिना स्वीकार है क्या
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आंखों पर लगा लिया विलायती चश्मा
कैसे देखे बेचारा देसी ज़मीं आसमां
खोया रहता है हमेशा बुकर के सपनों में
लिखता है वह जिसका नहीं सिर-पैर-ज़ुबां
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उफ़! क्या करें इस कलम का
लिख ही नहीं पाती दिल के हालात
काश कागज़ में ही हो ऎसी करामात
पढ लें वो मिरे दिल के ज़ज़्बात
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तुमसे जुडा मैं और शब्द हो गया
इस जुडाव से मेरा एक अर्थ हो गया
जहां जहां पहुंचे मेरा यह अर्थ
जीवन का पूरा मनोरथ हो गया
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27/11/2010

कौन याद करता है, कौन याद आता है
यादें हार जाती हैं वक्त जीत जाता है
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हो गई सरे बाज़ार जग हंसाई मेरी
जब छोड के चला गया वो कलाई मेरी
हुई न थी ऎसी भी उससे लडाई मेरी
रोके से भी ना रुकी रुलाई मेरी
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कितने  लोग, पढते हैं खुद को
पूरी की पूरी जमात जुटी है
औरों को पढाने में
कितने लोग, आजमाते हैं खुद को
पूरी की पूरी जमात जुटी हैं
औरों को आजमाने में
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कुछ लोगों ने ज़िंदगी को ये अर्थ दिए
आज़ाद परिंदे कैद कर  लिए
कर न सके फ़िर कभी उडने का हौसला
पिंज़रों में भी उनके पर कतर दिए
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नींद में इधर उधर
हाथ पैर चलाते हैं
ख्वाबों वो हमें अक्सर
यूं छेड जाते हैं
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मिलते हैं सच्चे दोस्त
ज़िंदगी में नसीब से
समझे जो दोस्त और दोस्ती को
दिल के करीब से
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ज़िंदगी इस तरह जिया कीजिए
बस प्यार ही प्यार किया कीजिए
कोई आप को कुछ दे कि न दे
आप सभी को अपना प्यार दिया कीजिए
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22/11/2010

बिटिया चांद सी बेटा चांद सा
दो प्रेमियों का जोडा चांद सा
चांद मालूम भी न होगा
धरती पर क्या क्या है चांद सा
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लोगों के लिए इतना करते लोग
लोगों के लिए जीते मरते लोग
लोगों को देख घबरा जाते हैं
लोगों से कितना डरते लोग
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उम्र बीत जाती है मंजिलों की चाह में
मंजिल होती ही नहीं कोई ज़िंदगी की राह में
हर थकान पर कुछ सुस्ताना ठीक रहता है
आगे का सफ़र ठीक रहता है
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किस में अपनी आस्था मानूं
किधर अपना रास्ता जानूं
हर शै बदल रही है फ़ैशन की तरह
किस फ़ैशन में खुद को ढालूं, अपना वजूद बचालूं
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ज़िंदगी खतम हुई कि सांस की आवा-जाही पता नहीं
सोच खतम हुई कि कलम की स्याही पता नहीं
इतना तो पता है कि खतम हुआ है कुछ
पर कहां कहां क्या क्या खतम हुआ पता नहीं
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कहां कहां फ़िसला, कहां कहां अडा होगा
जब वह अपने पैरों पर खडा होगा
कितनी मुश्किलों से लडा होगा
तब कहीं जाकर बडा होगा
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शब्दों से मत खेलो यार
शब्द बाण है शब्द व्यवहार
शब्दों से हो गया महाभारत
गीता शब्दों का चमत्कार
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20/11/2010

फ़ूलों की ताज़गी कब तलक
वक्त के साथ मुरझा जानी है
खुश्बुओं की भी एक उम्र है अपनी
उसके बाद सिर्फ़ हवा रह जानी हैं
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किस प्यार का गम, काहे का बहाना सनम
क्यूं किस्मत को कोसें क्यूं पालें कोई भरम
दिल तो होता ही है टूटने के लिए
क्यूं बार बार रोएं क्यूं गमजदां हों हम
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आंखों से बहते बहते अचानक
रुक गया पानी
किसी आंख के लिए
जैसे झुक गया पानी
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कितना मूर्ख है दोस्ती वफ़ा की बात करता है
इस ज़माने में उस ज़माने की बात करता है
दोस्ती और वफ़ाएं कहां है आजकल
महज वक्तगुज़ार(टाईमपास) सिलसिलें हैं आजकल
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लिखें वह जो पढे कोई
कहें वह जो सुनें कोई
क्या इतना काफ़ी नहीं होगा?
सन्नाटों को हराने के लिए
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दोस्ती दर्द से हमने कर ही ली आखिर
खा ही लिया सीने पर ये ज़हरबुझा तीर आखिर
देख लिए तुम्हारी चाहत के तमाम ज़लवे 
देखते हैं और क्या क्या दिखाती है तकदीर आखिर
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खयालों में ही खामख्वाह खयाल आया है
खयालों को भला कौन पकड पाया है
खयालों को गिरफ़्तार करने की बात करता है
लगता है यार! खयालों से ही मात खाया है
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