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02/12/2010

पी लेना गरल इतना आसान नहीं है
हो जाना मीरा इतना आसान नहीं है
तपना पडता है अगन में सोने को
आभूषण में ढलने के लिए
पराई आग में खुद को जलाना
इतना आसान नहीं है
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चांद को जब देखा चांद ने
चांद से कुछ कहा चांद ने
लोग पूछते पूछते खुद चांद हो गए
चांद ने किसी को न बताया क्या कहा चांद ने
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तुम्हारी यादों की आहटों से
उचक उचक जाता है मन
कहां हो तुम, तुम्हें बुलाता है
तुम्हारा तलबगार मन
*******



आचार बिना विचार है क्या
आकार बिना निराकार है क्या
पराजय बिना जयकार है क्या
अस्वीकार बिना स्वीकार है क्या
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आंखों पर लगा लिया विलायती चश्मा
कैसे देखे बेचारा देसी ज़मीं आसमां
खोया रहता है हमेशा बुकर के सपनों में
लिखता है वह जिसका नहीं सिर-पैर-ज़ुबां
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उफ़! क्या करें इस कलम का
लिख ही नहीं पाती दिल के हालात
काश कागज़ में ही हो ऎसी करामात
पढ लें वो मिरे दिल के ज़ज़्बात
*******


तुमसे जुडा मैं और शब्द हो गया
इस जुडाव से मेरा एक अर्थ हो गया
जहां जहां पहुंचे मेरा यह अर्थ
जीवन का पूरा मनोरथ हो गया
*******

1 comments:

कडुवासच said...

... bahut sundar ... behatreen !!!

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