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21/02/2011

सांस और दिल का अज़ीब अहम रिश्ता है


बातों ही बातों में बात निकल आती है
एक दो नहीं कई साथ निकल आती है
कितने ही लोकों, लोगों से साक्षात कराती
हर ऊंचाई गहराई नापती चली जाती है
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खरबों के तिरुपति, अरबों के सांई
श्रद्दा,भक्ति में कमी कहीं ना आई
लानत है भिखमंगों पर
वहीं के वहीं है भाई!!
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सांस और दिल का अज़ीब अहम रिश्ता है
एक हिलाता है एक हिलता है
सांस तो सभी के पास मिल जाती हैं मगर
दिल बहुत मुश्किल से मिलता है
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आशिकों के भरोसे बहुत नाज़ुक होते हैं
बहुत ही सिरफ़िरे माशूका माशूक होते हैं
मज़ाल है बिना पूछे सांस भी ले
दोनों तरफ़ हाथों में चाबुक होते हैं
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गोदने की मांनिद
बहुत ही बेरहमी से रौंदा ऎसे?
ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं
खालिस मिट्टी का घरौंदा हो जैसे
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ज़िंदगी का कोई भी पल दिन महिना साल
साधारण नहीं होता
हर बीता पल दिन महिना साल असाधारण है
जो  जीने का
अगला पल दिन महिना साल देता

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