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03/03/2011


गलतफ़हमियों के शिकार हो गए
रिश्तों के बंद कई द्वार हो गए
गलतफ़हमियों के चपेट में आ
अच्छे भले लोग बीमार हो गए
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सच कहने, सुनने की हिम्मत ढूंढ रहा हूं
चेहरे चेहरे पर सच्ची चाहत ढूंढ रहा हूं
जानता हूं मुश्किल है पर असंभव नहीं
स्लम डाग के लिए मिलियनी हकीकत ढूंढ रहा हूं
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कुछ सवालों के उत्तर नहीं होते
कुछ रिश्ते बाहर के भीतर नहीं होते
उन कंगूरों का भरोसा क्या करें
नींव में जिनके पत्थर नहीं होते
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यार को यार का ना ऎतबार चाहिए
दो और लो, ना इंतज़ार चाहिए
बहुत हाईटेक प्यार है आज का
बात बात पर उपहार चाहिए
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बीडी जलाने से शुरु होकर बात
मुन्नी की बदनामी
और शीला की ज़वानी तक
आ पहुंची है
क्या कोई बता सकता है
हमारी सोच
कहां आ पहुंची है?
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खामोशियां जब ज़ुंबा खोलती है
हकीकतें कोने टटोलती है
एक के बाद एक खुलते जाते हैं पर्दे
जब आप उनके सामने और वो आपके सामने होती है
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कुछ रिश्तों को भरोसा दिलाना मुश्किल है
कितना भी करो, निभना-निभाना मुश्किल है
ज़िंदगी बीत जाती है यूं ही रोते झींकते
उनके संदेहों से पार पाना मुश्किल है

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