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15/04/2011




सुबह से शाम सब के साथ खटते खटते
कितना थक जाता है दिन
इसीलिए यूं ही धाडी के मजूर मानिंद
बिना कहे-सुने चुपचाप ढल जाता है दिन

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कर न सका कुछ सिर्फ़ सोचता ही रह गया
एक जरा सी चूक से जीवन ही बदल गया
कोशिशें बहुत की मगर रोक न पाया
पल भर भी न ठहरा वो पल निकल गया
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नीचे के ईश्वर ऊपर के ईश्वरों से बडे हैं
इसीलिए तो सब उनकी सेवा में खडे हैं
जिस पर हो कृपा, करे वारे-न्यारे
जीवन नरक कर डाले जिस पर ये बिगडे हैं
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प्रेम के सारे फ़साने बदल डाले
आइने दिखाने वाले आइने बदल डाले
हमपेशा से ही करते हैं प्रेम, शादी
पेशेवरों ने प्रेम के माने बदल डाले

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एक जिद के लिए ज़िंदगी से ठान ली
एक जिद ने न जाने कितनी जिदें पहचान ली
एक जिद पूरी करने के लिए
एक जिद ने जान दी, एक जिद ने जान ली
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आंसुओं का अहसास
सिर्फ़ गाल करते हैं
लोग तो सिर्फ़ आंसुओं से
सवाल करते हैं
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दर्पण कभी झूठ नहीं बोलते
और हम कभी सच नहीं बोलते
देखते रहते हैं अपने ही मुखोटै
सच के नहीं कभी, चेहरे टटोलते

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